






परमस्नेही विद्यानुरागी बन्धुजन एवं भगिनियों,
सादर नमस्कार!
आशा है आप सभी सानन्द होंगे!
निज बालक के कमलरूपी मुखमण्डल का अवलोकन हम सभी को आनन्द की अनुभूति प्रदान करता है। बालक के इस आनन्दानुभूतिपूर्ण अंकुरण का पूर्ण भाव विकसित करने की पूर्ति हेतु आपके नगर में जन कोलाहल से दूर प्रकृति के सुन्दर सुरम्य वातावरण के बीच पीलीभीत मार्ग पर पूर्व दिशा में स्थित एक ऐसा शिक्षादीप आपके नगर में प्रज्ज्वलित है, जो विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान एवं भारतीय शिक्षा समिति उत्तर प्रदेश से संचालित है, जिसे हम ‘‘सरस्वती विद्या मन्दिर इण्टर कॉलेज’’ के नाम से जानते हैं। जो अपनी ज्ञान ज्योति से सम्पूर्ण क्षेत्र को प्रकाशित कर रहा है। आदर्श जीवन जीने की प्रेरणा एवं विद्यावान, गुणी, अतिचातुर के दर्शन कराने हेतु इस विद्यालय का परिचयात्मक विवरण आपके कर कमलों में समर्पित है। यह विवरणिका आपको संस्थान की नियमावली, विशेषताओं एवं सामाजिक, नैतिक और सांस्कृतिक क्रियाकलापों से आपके पाल्यों के विकास में सफलतम् सिद्ध होगी।
सत्रारम्भ के शुभ अवसर पर इस मकरन्द के सार को पढ़े और हस्तान्तरित करें ताकि यह ‘‘पुष्प’’ अपनी सुगन्ध समाज
में बिखेर सके।
आपके बहुमूल्य सुझाव एवं सहयोग की अपेक्षा के साथ आपका स्नेहाकांक्षी-
वीरेंद्र कुमार मिश्र
प्रधानाचार्य
सरस्वती विद्या मन्दिर इण्टर कॉलेज
बीसलपुर (पीलीभीत)
मोबा.-9412554678
योग का व्यक्ति के जीवन में बहुत महत्त्व है। व्यक्ति का सर्वांगीण विकास हो, इसके लिए योग एक महत्त्वपूर्ण साधन है। योग साधना एक ऐसी सरल तथा सफल साधना है जिसके द्वारा व्यक्ति का विकास ही नहीं वरन् सारे समाज, राष्ट्र तथा अन्त में सारी मानवता का कल्याण हो सकता है। यदि व्यक्ति अच्छा है, ईमानदार है, चरित्रवान है, कर्तव्यनिष्ठ है तो समाज भी ऐसा ही बनेगा। यदि समाज अच्छा है तो राष्ट्र अच्छा होगा।
शारीरिक शिक्षा से आशय शरीर से संबंधित शिक्षा प्रदान करना हैं। यह शिक्षा सामान्यतः व्यायाम,योग,साफ-सफाई,जिमनास्टिक, सह-पाठ्यक्रम गतिविधियों आदि के माध्यम से प्रदान की जाती हैं। शारीरिक शिक्षा प्रदान करने का उद्देश्य मात्र छात्रों को स्वस्थ रखना ही नही हैं। अपितु मनोविज्ञान एवं बाल मनोविज्ञान के अंतर्गत इसे महत्वपूर्ण स्थान दिया गया हैं। क्योंकि यह शरीर को ही नही अपितु छात्रों के मस्तिष्क एवं उनके व्यवहार में भी परिवर्तन लाने का कार्य करती हैं।
संगीत बहुत ही शक्तिशाली माध्यम है और सभीतक काफी सकारात्मक संदेश पहुँचाता है। हमें संगीत द्वारा काफी सहायता मिलती है, संतीत हमारे जीवन को और भी अच्छा करने का कार्य करता है। संगीत की प्रकृति प्रोत्साहन तथा बढ़ावा देने की भी है, जो सभी नकारात्मक विचारों को हटाकर मनुष्य की एकाग्रता की शक्ति को बढ़ाने का कार्य भी करता है
संस्कृत, विश्व की सबसे पुरानी पुस्तक (ऋग्वेद) की भाषा है। इसलिये इसे विश्व की प्रथम भाषा मानने में कहीं किसी संशय की संभावना नहीं है। इसकी सुस्पष्ट व्याकरण और वर्णमाला की वैज्ञानिकता के कारण सर्वश्रेष्ठता भी स्वयं सिद्ध है। संस्कृत अध्ययन करने वाले छात्रों को गणित, विज्ञान एवं अन्य भाषाएँ ग्रहण करने में सहायता मिलती है। संस्कृत में बात करने से मानव शरीर का तंत्रिका तंत्र सक्रिय रहता है। जिससे कि व्यक्ति का शरीर सकारात्मक आवेश के साथ सक्रिय हो जाता है। .
वस्तुतः विद्यार्थी जीवन आचरण की पाठशाला है. सभ्य संस्कार सम्पन्न नागरिक का निर्माण विद्यार्थी जीवन में ही होता है. विद्यार्थी को जैसी शिक्षा दी जायेगी, जैसे संस्कार उन्हें दिए जाएगे, आगे चलकर वह वैसा ही नागरिक बनेगा. इस बात का ध्यान रखकर नैतिक शिक्षा का समायोजन किया गया है
सरस्वती शिशु मन्दिर योजना का प्रथम दीप गोरखपुर में 1952 में प्रज्ज्वलित हुआ था। जिसकी आभा चतुर्दिक आलोकित हुई। इस आलोकिक क्रान्ति में देश प्रेम एवं भारतीयत्व की आशा किरण दिखायी दी।
इसी किरण के प्रभाव से बीसलपुर नगर के जागरुक स्वयं सेवकों ने भी छात्रों में राष्ट्रभक्ति एवं सद्संस्कार अंकुरण हेतु शिक्षा को ही श्रेष्ठ माध्यम समझा और 15 अगस्त 1972 को संघ के वरिष्ठ स्वयं सेवक स्व0 श्री रामरक्षपाल गुप्त, स्व0 श्री रामअवतार अग्रवाल, डॉ0 रामप्रसाद एवं डॉ0 फतेह सिंह के सहयोग से सरस्वती शिशु मन्दिर की स्थापना हुयी।
विद्यालय की कार्य प्रणाली एवं परिणाम से प्रभावित होकर अभिभावकों एवं समाज के बन्धुओं ने विद्या मन्दिर की जूनियर कक्षायें प्रारम्भ करने का आग्रह तत्कालीन प्रबन्ध तन्त्र से किया। विवश होकर छात्रों की आवश्यकता एवं समाज के आग्रह पर साहू काशीनाथ मित्तल एवं डा0 वागीश चन्द्र मिश्रा के सहयोग एवं रामरक्षपाल गुप्त जी के परिश्रम तथा डा0 योगेश चन्द्र मिश्र के परामर्श से जुलाई 1978 में सरस्वती विद्या मन्दिर की कक्षा षष्ठ प्रारम्भ हुई।